नई दिल्ली, 19 अक्टूबर: मुगलों के समय में जहां आगरा और दिल्ली सत्ता का केंद्र थे, वहीं 18वीं सदी के अंत तक अंग्रेजों का प्रभाव बढ़ता चला गया। इस दौरान अंग्रेजों ने एक महत्वपूर्ण फैसला लिया—उन्होंने कोलकाता को ब्रिटिश भारत की पहली राजधानी बनाने का ऐलान किया।
लेकिन सवाल उठता है, क्यों चुना गया कोलकाता को ब्रिटिश भारत की राजधानी? इस ऐतिहासिक फैसले के पीछे कई कारण थे, जिसमें व्यापारिक रणनीति और भौगोलिक स्थितियां अहम रहीं। इस रिपोर्ट में जानिए, कोलकाता के ब्रिटिश राजधानी बनने की पूरी कहानी।
कोलकाता का उदय: जॉब चारनॉक की भूमिका
कोलकाता, जिसे अंग्रेजी में ‘कैलकटा’ और बांग्ला में ‘कोलिकाता’ कहा जाता है, का इतिहास गहरा और रोचक है। जॉब चारनॉक नामक अंग्रेजी व्यापारी को कोलकाता का संस्थापक माना जाता है। चारनॉक ने ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापारियों के लिए यहां एक बस्ती बसाई थी। बाद में, कंपनी ने इस क्षेत्र के तीन गांव—सूतानुटि, कोलिकाता, और गोबिंदपुर—को स्थानीय जमींदारों से खरीद लिया और इसे विकसित करना शुरू किया।
न्यायिक और प्रशासनिक विकास
1727 में इंग्लैंड के राजा जार्ज द्वितीय के आदेश पर कोलकाता में नागरिक न्यायालय की स्थापना की गई, जिससे यह प्रशासनिक रूप से और मजबूत हुआ। जल्द ही नगर निगम का गठन हुआ और पहले मेयर का चुनाव भी किया गया। यह सब इंग्लिश शासन के दौरान कोलकाता को एक व्यवस्थित शहर में बदलने के लिए उठाए गए अहम कदम थे।
कोलकाता बनता है सत्ता का केंद्र
1756 में बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला ने कोलकाता पर हमला कर इसे जीत लिया, लेकिन अंग्रेजों ने जल्द ही इस पर फिर से अधिकार कर लिया। इसके बाद, 1772 में गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने कोलकाता को ब्रिटिश भारत की राजधानी घोषित किया। अगले 139 वर्षों तक, यानी 1911 तक, कोलकाता ही ब्रिटिश शासन का सत्ता केंद्र बना रहा।
राजधानी बदलकर दिल्ली: 1911 का अहम मोड़
हालांकि, 12 दिसंबर 1911 को ब्रिटिश सम्राट जार्ज पंचम ने दिल्ली को भारत की नई राजधानी बनाने का ऐलान किया। इसके साथ ही, कोलकाता के सत्ता केंद्र का सफर समाप्त हो गया। लेकिन कोलकाता तब भी भारतीय स्वाधीनता आंदोलन और व्यापारिक गतिविधियों में अहम भूमिका निभाता रहा।
नामकरण और वर्तमान में कोलकाता
आजादी के बाद, कोलकाता को पश्चिम बंगाल की राजधानी बनाया गया और 1 जनवरी 2001 को इसका आधिकारिक नाम ‘कलकत्ता’ से बदलकर ‘कोलकाता’ कर दिया गया।
कोलकाता के इस अद्वितीय सफर ने इसे न सिर्फ भारत की संस्कृति और राजनीति में बल्कि इतिहास में भी विशेष स्थान दिया है।