Dhadak 2: जब मोहब्बत जाति से टकराती है, तब वह एक आंदोलन बन जाती है

नमस्कार साथियों!

अगस्त की इस उमस भरी शाम में, बाहर भले ही बारिश हो या न हो, मन के भीतर भावनाओं की गरज जरूर गूंज रही है। ऐसे मौसम में हम आपके लिए लेकर आए हैं Dhadak 2 का एक ऐसा रिव्यू, जो सिर्फ फिल्म पर नहीं, समाज की उन परतों पर भी रोशनी डालता है जिन्हें अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है।

यह सिर्फ एक फिल्म की समीक्षा नहीं है — यह एक अनुभव है, जो आपको महसूस होगा जैसे आपने कहानी को जिया हो।

कहानी: इश्क, असमानता और आत्मसम्मान के बीच की लड़ाई

Dhadak 2 कोई सीक्वल नहीं है। यह एक स्वतंत्र कहानी है — न तो 2018 वाली चमक-दमक, न जान्हवी-ईशान जैसी मासूमियत। यह कहानी है निलेश (सिद्धांत चतुर्वेदी) की, जो एक दलित लॉ स्टूडेंट है, और विदि (त्रिप्ती डिमरी) की, जो उच्च जाति के संपन्न परिवार से आती है।

कॉलेज में शुरू हुआ रोमांस धीरे-धीरे समाज की कठोर सच्चाइयों से टकराने लगता है — जातिवाद, सामाजिक भेदभाव और पहचान की जद्दोजहद। रोमांस के साथ-साथ यह कहानी सामाजिक असमानताओं पर ऐसी चोट करती है जो देर तक असर छोड़ती है।

यह फिल्म तमिल क्लासिक Pariyerum Perumal से प्रेरित जरूर है, लेकिन इसकी ज़मीन, इसकी भाषा और इसकी भावनाएं पूरी तरह हिंदी मिट्टी से जुड़ी हैं।

अभिनय: जब किरदार आत्मा में उतर जाएं

सिद्धांत चतुर्वेदी (निलेश):
सिद्धांत ने एक ऐसे किरदार को जिया है जो बाहर से शांत लेकिन भीतर से आक्रोशित है। हर डायलॉग, हर नज़र में उनके भीतर की आग दिखाई देती है।

त्रिप्ती डिमरी (विदि):
त्रिप्ती इस बार पहले से कहीं ज्यादा परिपक्व नज़र आती हैं। उनकी आंखें, उनकी खामोशी, और उनके भाव — हर फ्रेम में आपको रोक लेते हैं। यह अब तक का उनका सबसे सशक्त और संवेदनशील अभिनय है।

ज़ाकिर हुसैन और सौरभ सचदेवा:
सपोर्टिंग रोल्स में भी प्रभावशाली। खासकर वे दृश्य जब जातिगत टकराव अपने चरम पर पहुंचते हैं, तो उनका योगदान कहानी को और गहराई देता है।

निर्देशन, संगीत और तकनीकी पक्ष

निर्देशन (Shazia Iqbal):
शाज़िया ने फिल्म को संवेदनशीलता और साहस से निर्देशित किया है। कुछ जगहों पर कहानी की रफ्तार धीमी पड़ती है, लेकिन उनका विज़न और सामाजिक प्रतिबद्धता साफ झलकती है।

सिनेमैटोग्राफी (Sylvester Fonseca):
छोटे शहरों की गलियाँ, सरकारी कॉलेजों का ठहराव, कोर्ट की दीवारें — सब कुछ इतना जीवंत है कि आप खुद को उस दुनिया में महसूस करते हैं।

संगीत:
गाने कहानी में रचे-बसे हैं, लेकिन कोई ट्रैक ऐसा नहीं जो दिल में गूंजता रह जाए। बैकग्राउंड स्कोर इमोशन्स को मजबूत करता है, पर म्यूज़िक याद नहीं रह पाता।

एडिटिंग:
146 मिनट की फिल्म थोड़ा खिंचती है, खासकर पहले हाफ में। क्लाइमेक्स तक पहुँचते-पहुँचते थोड़ी थकान हो सकती है।

ट्रेलर और ओवरऑल इम्प्रेशन

ट्रेलर से ही स्पष्ट था कि ये कोई टिपिकल बॉलीवुड रोमांस नहीं होने वाली। सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं थीं — “यह फिल्म दिमाग से नहीं, दिल से देखी जाएगी।”
वह वादा फिल्म निभाती है। ट्रेलर जितना बोल्ड था, फिल्म उससे कहीं ज्यादा सच्ची।

ओवरएक्टिंग की बात?
कुल मिलाकर, कोई भी परफॉर्मेंस over-the-top नहीं है। हां, कुछ संवादों में त्रिप्ती डिमरी का एक्टिविस्ट टोन थोड़ा ड्रामैटिक लग सकता है, लेकिन वह किरदार की सच्चाई से मेल खाता है।

क्यों देखें / क्यों न देखें?

ज़रूर देखें अगर:

  • आप सामाजिक मुद्दों पर आधारित कहानियों से जुड़ते हैं।

  • रोमांस में रियलिज़्म और सामाजिक गहराई पसंद करते हैं।

  • आपको संवेदनशील और परिपक्व परफॉर्मेंस देखने का शौक है।

बचें अगर:

  • आप हल्की-फुल्की मसाला एंटरटेनमेंट की तलाश में हैं।

  • गंभीर टोन और धीमी गति वाली कहानी आपको बोर कर सकती है।

रेटिंग: ⭐⭐⭐⭐☆ (3.5/5)

“किरदार दमदार, विषय साहसी, लेकिन स्क्रीनप्ले थोड़ा और कसा होता तो असर और गहरा होता।”

Dhadak 2 क्यों देखनी चाहिए?

क्योंकि यह सिर्फ एक प्रेम कहानी नहीं है — यह उस आवाज़ की कहानी है जिसे अक्सर दबा दिया जाता है। यह फिल्म हमारे समाज के उस आईने की तरह है जिसमें देखने की हिम्मत हर किसी में नहीं होती।

अगर आपके दिल में सवाल हैं और सोचने की ताक़त है — तो इस फिल्म को ज़रूर देखिए।

People Also Ask (Google Style)

Q. क्या Dhadak 2, Dhadak (2018) का सीक्वल है?
→ नहीं, यह एक नई और स्वतंत्र कहानी है।

Q. क्या Dhadak 2 किसी साउथ फिल्म से प्रेरित है?
→ हाँ, यह तमिल फिल्म Pariyerum Perumal से प्रेरित है।

Q. क्या इसमें आइटम सॉन्ग या ग्लैमर है?
→ नहीं, फिल्म गंभीर विषय पर आधारित है और इसमें कोई आइटम सॉन्ग नहीं है।

c8a6476cc56d91d2c4ecac4c3fe35b53fa01cda80c280e8ebeacd3d57dda8139?s=96&d=mm&r=g

संजय कुमार

मैं खबर काशी डॉटकॉम के लिए बतौर एक राइटर जुड़ा हूं। सिनेमा देखने का शौक है तो यहां उसी की बात करूंगा। सिनेमा के हर पहलू—कहानी, अभिनय, निर्देशन, संगीत और सिनेमैटोग्राफी—पर बारीकी से नजर रहती है। मेरी कोशिश रहेगी कि मैं दर्शकों को ईमानदार, साफ-सुथरी और समझदारी भरी समीक्षा दूँ, जिससे वो तय कर सकें कि कोई फिल्म देखनी है या नहीं। फिल्में सिर्फ मनोरंजन नहीं, समाज का आईना भी होती हैं—और मैं उसी आईने को आपके सामने साफ-साफ रखता हूँ।"

Leave a Comment