छठ महापर्व के गीतों को एक नई पहचान देने वाली ‘छठ कोकिला’ शारदा सिन्हा का मंगलवार रात 72 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। कुछ दिन पहले तबीयत बिगड़ने पर उन्हें दिल्ली के एम्स में भर्ती कराया गया था, और सोमवार को उनकी हालत गंभीर होने पर वेंटिलेटर पर रखा गया। उनके पुत्र अंशुमन सिन्हा ने फेसबुक पोस्ट के माध्यम से यह दु:खद समाचार साझा किया, लिखा, “आप सबकी प्रार्थना और प्यार हमेशा माँ के साथ रहेंगे। माँ को छठी मइया ने अपने पास बुला लिया है।”
लोक संगीत की अनमोल धरोहर, हर घर में गूंजने वाली आवाज़
पद्म भूषण से सम्मानित शारदा सिन्हा ने अपनी मधुर आवाज़ के जरिए छठ और विवाह के गीतों को घर-घर पहुँचाया। उनकी आवाज़ ने भोजपुरी और मैथिली गीतों को नई ऊंचाइयों पर पहुँचाया। उनके गाए “विवाह गीत” और “छठ गीत” हर पर्व पर बजते हैं। संगीत में उनके योगदान के लिए उन्हें पद्मश्री और पद्म विभूषण जैसे सम्मानों से नवाजा गया है। शारदा सिन्हा का जन्म 1 अक्टूबर 1952 को बिहार के समस्तीपुर जिले में हुआ था। उन्होंने 1980 में ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन से अपने करियर की शुरुआत की थी और अपनी विशिष्ट शैली के चलते वह बहुत जल्द लोक गायिकी की दिग्गज शख्सियत बन गईं।
छठी मइया की भक्ति में रची-बसी लोक गायिकी
अंशुमन सिन्हा ने कुछ दिनों पहले ही अपनी माँ की हालत पर चिंता जताते हुए सोशल मीडिया पर जानकारी साझा की थी। फैंस और शुभचिंतकों ने शारदा जी के स्वास्थ्य के लिए प्रार्थनाएं की थीं। उनकी आवाज़ में ‘दुखवा मिटायिन छठी मइया’ जैसे गाने, हर वर्ष छठ पूजा के अवसर पर घर-घर में बजते हैं। शारदा सिन्हा की आवाज़ ने छठ महापर्व को एक अंतर्राष्ट्रीय पहचान दी थी, और उनके निधन से लोक संगीत जगत में एक बड़ा खालीपन महसूस किया जा रहा है।
बिहार कोकिला का सफर: लोक गायिकी से बॉलीवुड तक
शारदा सिन्हा को ‘बिहार कोकिला’ के नाम से भी जाना जाता है। अपने गायन से उन्होंने न सिर्फ छठ गीतों को बल्कि अन्य कई लोक गीतों को भी ऊँचाइयों पर पहुँचाया। छठ महापर्व के अलावा, शारदा जी ने विवाह और भक्ति गीतों से लेकर बॉलीवुड तक में अपनी जगह बनाई। ‘मैंने प्यार किया’ फिल्म का उनका गाना “कहे तो से सजना” सुपरहिट साबित हुआ। इसके अलावा ‘तार बिजली’ और ‘कौन सी नगरिया’ जैसे गाने भी लोकप्रिय हुए। शारदा जी को कई बार राजनीति में आने के ऑफर मिले, लेकिन उन्होंने अपने संगीत को ही सर्वोपरि रखा और राजनीति से दूरी बनाए रखी।
शिक्षा और संगीत प्रशिक्षण: संगीत में शोध से लोक गायिकी का सफर
शारदा सिन्हा ने न केवल संगीत में पीएचडी की, बल्कि बिहार के कई कॉलेजों में संगीत पढ़ाया भी। उनकी शैक्षिक यात्रा उनकी संगीत यात्रा का अहम हिस्सा रही है। ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय से संगीत में पीएचडी करने के बाद उन्होंने लोक और शास्त्रीय संगीत में खुद को निपुण किया। मगध महिला कॉलेज और प्रयाग संगीत समिति से उन्होंने संगीत का औपचारिक प्रशिक्षण लिया, जिसने उन्हें एक बहुमुखी संगीतकार और शोधकर्ता के रूप में विकसित किया।
पारिवारिक योगदान और प्रेरणा
शारदा सिन्हा के संगीत सफर में उनके परिवार, विशेषकर उनके पति और ससुरालवालों का महत्वपूर्ण योगदान रहा। उनके पति ने उन्हें हमेशा संगीत के क्षेत्र में आगे बढ़ने का समर्थन दिया। शारदा जी ने अपने करियर के दौरान घर और समाज की पारंपरिक सीमाओं को लांघकर लोक संगीत को एक सम्मानजनक मंच पर पहुँचाया। उनके बच्चों, अंशुमन और उनकी बेटी ने भी इस दुखद घड़ी में उनके चाहनेवालों को जानकारी देकर इस मुश्किल समय में परिवार को संभालने का कार्य किया।
अंतिम विदाई और विरासत
शारदा सिन्हा का जाना लोक संगीत और विशेष रूप से छठ पूजा के गीतों के प्रेमियों के लिए एक अपूरणीय क्षति है। उनकी आवाज़ ने लोक गीतों को जिस तरह से सजीव किया, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत बनी रहेंगी। उनके द्वारा गाए छठ गीत हर साल यह याद दिलाते रहेंगे कि किस तरह एक सशक्त आवाज़ ने एक पर्व को सांस्कृतिक रूप से विश्व स्तर पर पहचान दिलाई थी।