jitiya vrat: हिंदू धर्म में जितिया व्रत को सबसे कठिन और महत्वपूर्ण व्रतों में गिना जाता है। यह व्रत न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि मां और संतान के रिश्ते में अटूट समर्पण, ममता और तपस्या की अनोखी मिसाल भी है। पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड के ग्रामीण और शहरी इलाकों में इसे ममता का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है। इसे जीवित्पुत्रिका या जीउतिया व्रत भी कहा जाता है।
जितिया व्रत का समय और विशेष संयोग
हर साल यह व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है। इस बार यह व्रत रविवार सुबह 7:23 बजे से शुरू होकर सोमवार तड़के 3:06 बजे तक रहेगा।
इस वर्ष जितिया व्रत का संयोग रोहिणी नक्षत्र, सिद्धि योग और रवि योग के साथ बन रहा है, जो इसे और अधिक शुभ एवं फलदायी माना जा रहा है।
इस दिन चंद्रमा वृषभ राशि में दिनभर विराजमान रहेंगे और रात 11:18 बजे चंद्रोदय होगा, जिससे रात्रिकालीन पूजा का महत्व और बढ़ जाएगा।
जितिया व्रत की कठिन साधना
जितिया व्रत की सबसे बड़ी विशेषता है कि इसमें निर्जला उपवास रखा जाता है। माताएं पूरे दिन बिना अन्न-जल ग्रहण किए उपवास करती हैं और संतान की लंबी उम्र, उत्तम स्वास्थ्य और उज्ज्वल भविष्य की कामना करती हैं।
शाम को महिलाएं मिट्टी या गोबर से जीमूतवाहन देवता और जितिया माता की प्रतिमा बनाकर पूजा करती हैं।
इसके साथ ही जितिया व्रत कथा का पाठ अनिवार्य माना जाता है।
जीमूतवाहन की कथा
इस व्रत से जुड़ा सबसे प्रमुख प्रसंग जीमूतवाहन देवता का है। पौराणिक कथा के अनुसार, जीमूतवाहन ने एक नाग बालक की रक्षा के लिए अपनी जान तक की परवाह नहीं की थी। उनके त्याग और साहस के कारण ही माताएं उन्हें पूजती हैं और संतान की रक्षा की प्रार्थना करती हैं।
पौराणिक कथा: चील और सियारिन
लोककथाओं में इस व्रत का महत्व और स्पष्ट होता है। कहा जाता है—
एक बार जंगल में रहने वाली चील और सियारिन दोनों ने यह व्रत करने का संकल्प लिया।
चील ने पूरे नियम और अनुशासन से व्रत निभाया, जबकि सियारिन भूख न सह पाने के कारण रात में मांस खा बैठी।
अगले जन्म में चील एक मंत्री की पुत्री बनी, जिसके संतानें स्वस्थ और दीर्घायु हुईं। वहीं सियारिन राजकुमारी बनी, लेकिन उसकी संतानें जन्म लेते ही मर जाती थीं।
जब उसे अपनी गलती का एहसास हुआ, तो उसने दोबारा पूरे मन से जितिया व्रत किया और तब जाकर उसे भी स्वस्थ संतान का सुख मिला।
जीवित्पुत्रिका का पारण और विशेष भोजन
सोमवार को नवमी तिथि में व्रत का पारण किया जाएगा। व्रत तोड़ने की परंपरा भी विशेष होती है।
पारंपरिक रूप से इस दिन नोनी साग, मडुआ की रोटी और पंचसब्जी जैसे व्यंजन बनाए जाते हैं।
व्रती महिलाएं कथा और पूजा संपन्न करने के बाद ही अन्न-जल ग्रहण करती हैं।
सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व
जितिया व्रत को सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि मां की निस्वार्थ भक्ति और त्याग का पर्व माना जाता है। यह व्रत महिलाओं के बीच सामूहिक आस्था और सामाजिक जुड़ाव का भी अवसर बनता है, जब गांवों और मोहल्लों में एक साथ बैठकर माताएं कथा सुनती और पूजा करती हैं।