Jivitputrika Vrat 2024 In Hindi: जितिया व्रत का महत्व, पूजा विधि और पारण का समय

Jivitputrika Vrat 2024 In Hindi: जीवित्पुत्रिका व्रत, जिसे जितिया या जिउतिया व्रत भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में माताओं द्वारा अपने बच्चों की लंबी उम्र और स्वास्थ्य के लिए मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्योहार है।  हिंदू धर्म में जीवित्पुत्रिका व्रत का विशेष महत्व है जो मुख्यतः बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में बड़ी श्रद्धा से मनाया जाता है। इस व्रत का आयोजन हर साल आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है। यह व्रत माताओं की अपार भक्ति और संतान के प्रति उनके प्रेम को दर्शाता है।

जितिया व्रत का महत्व और पारण का समय (Jivitputrika Vrat 2024 Method)

इस व्रत को करने के लिए महिलाएं 24 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं। इस दौरान वे न तो खाना खाती हैं और न ही पानी पीती हैं। व्रत के दिन भगवान सूर्य की पूजा का विशेष महत्व होता है। जीवित्पुत्रिका व्रत तीन दिनों तक चलता है, जिसमें पहले दिन ‘नहाय खाय’ का आयोजन किया जाता है, फिर दूसरे दिन व्रत रखा जाता है, और तीसरे दिन पारण के साथ व्रत का समापन किया जाता है। इस साल 24 सितंबर को नहाय खाय किया जाएगा, 25 सितंबर को व्रत रखा जाएगा, और 26 सितंबर को पारण किया जाएगा।

पूजा की प्रक्रिया (Jivitputrika Vrat 2024 Puja Process)

इस दिन महिलाएं भगवान विष्णु, शिव और सूर्य की पूजा करती हैं। उगते और डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर उन्हें प्रसन्न किया जाता है। इस व्रत में भगवान जीमूतवाहन की विशेष पूजा की जाती है। महिलाएं जीमूतवाहन की मूर्ति स्थापित कर उसकी विधिपूर्वक पूजा करती हैं। इसके साथ ही, वे मिट्टी और गाय के गोबर से चील और सियारिन की छोटी-छोटी मूर्तियां बनाती हैं, जिन पर सिंदूर का टीका लगाकर जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनती हैं।

जीमूतवाहन की कथा (The Story of Jimutavahana)

भगवान जीमूतवाहन की कथा इस व्रत से जुड़ी हुई है। उनके पिता गंधर्व के शासक थे, और जीमूतवाहन ने अपने पिता की उदारता और करुणा को अपने राजकाज में अपनाया। एक दिन, जब उन्होंने एक वृद्ध महिला को रोते देखा, तो उन्होंने उसकी परेशानी पूछी। वृद्ध महिला ने बताया कि गरुड़ पक्षी के पास जाने के लिए उनके बेटे की बारी है। जीमूतवाहन ने दयालुता दिखाते हुए कहा कि वह खुद को गरुड़ के भोजन के रूप में पेश करेगा।

जब जीमूतवाहन ने गरुड़ को अपनी दया की कहानी सुनाई, तो गरुड़ ने उन्हें जीवनदान देने का वचन दिया। यह कहानी आत्म बलिदान, करुणा, और मातृत्व के भावनाओं को उजागर करती है, जो इस व्रत का आधार है।

लोककथाएं और मान्यताएं (Jitiya Vrat 2024 Folklore and beliefs)

जीवित्पुत्रिका व्रत से जुड़ी कई लोककथाएं प्रचलित हैं। इसे माताओं की भक्ति का प्रतीक माना जाता है, जो अपने बच्चों के लिए हर संभव प्रयास करती हैं। इस व्रत में सामूहिक पूजा का महत्व भी है, जहां महिलाएं एकत्रित होकर एक-दूसरे का सहयोग करती हैं और व्रत का पालन करती हैं।

इस व्रत के माध्यम से न केवल माताएं अपने बच्चों की भलाई की कामना करती हैं, बल्कि यह समाज में एकता और सहयोग की भावना को भी बढ़ावा देता है।

निष्कर्ष

जीवित्पुत्रिका व्रत मातृत्व का प्रतीक है, जो माताओं की अपार भक्ति और संतान के प्रति प्रेम को दर्शाता है। यह पर्व हमें सिखाता है कि मातृत्व का प्रेम और त्याग किसी भी कठिनाई को पार कर सकता है। इस व्रत के दौरान की जाने वाली पूजा और रिवाज इस भावना को और मजबूत करते हैं।

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