खुरपी नेचर विलेज: गाजीपुर का अनोखा गांव जहां जाने के लिए टिकट खरीदना पड़ता है

खुरपी नेचर विलेज: भारत को अक्सर ‘गांवों का देश’ कहा जाता है, जहाँ इसकी सच्ची आत्मा, सांस्कृतिक विरासत और अनूठी परंपराएं निवास करती हैं। लेकिन क्या आपने कभी एक ऐसे गांव की कल्पना की है, जहाँ प्रवेश के लिए आपको टिकट खरीदना पड़े और बदले में एक अद्वितीय, प्रेरणादायक अनुभव मिले? उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में स्थित खुरपी नेचर विलेज‘ (Khurpi Nature Village) ठीक ऐसा ही एक अद्भुत स्थान है, जो अब पूरे देश में ग्रामीण विकास और आत्मनिर्भरता के एक चमकते मॉडल के रूप में चर्चा का विषय बन चुका है।

जिला मुख्यालय से महज 15 किलोमीटर दूर सलामतपुर में स्थित इस अनूठे गाँव में प्रवेश के लिए आपको मात्र 20 रुपये का शुल्क देना होता है, जो गाँव के रखरखाव और विकास में सीधे योगदान देता है। यह कहानी है उस युवा दूरदर्शी सिद्धार्थ राय की, जिन्होंने अपनी एमबीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद शहर की चकाचौंध भरी नौकरी छोड़, अपने पैतृक गाँव की तस्वीर बदलने का बीड़ा उठाया।

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खुरपी नेचर विलेज।

बेंगलुरु की नौकरी छोड़, गांव में बुना आत्मनिर्भरता का सपना

सिद्धार्थ राय, जो बेंगलुरु में एक अच्छी-खासी ‘पैकेज’ वाली नौकरी कर रहे थे, को 2014 में यह विचार आया कि क्यों न अपने गाँव ‘खुरपी’ (Khurpi) को केवल एक रहने की जगह नहीं, बल्कि स्वरोजगार और ग्रामीण पर्यटन का एक जीवंत केंद्र बनाया जाए। उनका लक्ष्य स्पष्ट था: गाँव को आत्मनिर्भर बनाना, स्थानीय लोगों को रोजगार प्रदान करना और शहरी पलायन को रोकना।

इस सपने को पूरा करने के लिए सिद्धार्थ ने शुरुआती चुनौतियों का सामना किया। उन्होंने रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा के निजी सचिव के रूप में काम करते हुए अपने अनुभवों को समझा। फिर, अपने दोस्त अभिषेक के साथ मिलकर डेढ़ एकड़ जमीन पर गाय पालन से शुरुआत की। यह सिर्फ दूध के व्यवसाय तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उन्होंने गोबर को केंचुए की मदद से जैविक खाद में बदला, जिसे आसपास के किसानों को बेचा जाने लगा। यह एक टिकाऊ और आय-सृजित करने वाला मॉडल था, जिसने गाँव की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की नींव रखी।

एक गाँव, कई रंग: खुरपी नेचर विलेज के आकर्षण

खुरपी नेचर विलेज आज एक व्यवस्थित और जीवंत गाँव का आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करता है। यहाँ पहुँचते ही पर्यटक इसकी स्वच्छता और प्राकृतिक सुंदरता से मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। गाँव को इस तरह से डिज़ाइन किया गया है कि यह भारत के किसी बहुत पुराने और पारंपरिक गाँव की झलक दिखाता है, जो आगंतुकों को एक अलग दुनिया में ले जाता है:

  • मिनी चिड़ियाघर और मनोरंजन: गाँव में एक छोटा, आकर्षक चिड़ियाघर है, जहाँ बच्चे और बड़े दोनों ही विभिन्न प्रकार के पक्षियों और छोटे जानवरों जैसे खरगोश और तीतर को देख सकते हैं। इसके अलावा, घुड़सवारी और शांत तालाब में नौकायन (बोटिंग) का लुत्फ उठाया जा सकता है, जो शहरी जीवन की भागदौड़ से दूर एक शांत और आनंददायक अनुभव प्रदान करता है।
  • कला और जागरूकता: गाँव की हर दीवार पर खूबसूरत पेंटिंग और प्रेरक संदेश उकेरे गए हैं। ये पेंटिंग न केवल गाँव की सुंदरता बढ़ाती हैं, बल्कि सामाजिक जागरूकता, पर्यावरण संरक्षण और ग्रामीण संस्कृति के महत्व का संदेश भी देती हैं।
  • युवाओं के लिए सुविधाएँ: युवाओं के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए गाँव में एक आधुनिक ओपन जिम स्थापित किया गया है, जहाँ युवा सुबह-शाम व्यायाम कर सकते हैं। विशेष रूप से, सेना में शामिल होने का सपना देखने वाले युवाओं के लिए यह एक बेहतरीन सुविधा है, जो उन्हें शारीरिक रूप से फिट रहने में मदद करती है।
  • कौशल विकास केंद्र: लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से सिलाई और कंप्यूटर प्रशिक्षण केंद्र भी खोले गए हैं, जहाँ उन्हें व्यावहारिक कौशल सिखाया जाता है, जिससे वे भविष्य में स्वरोजगार कर सकें या बेहतर नौकरी पा सकें।
  • ‘किताबों का बगीचा’: ज्ञान का खुला खजाना: ज्ञान की प्यास बुझाने के लिए गाँव में एक अनूठा ‘किताबों का बगीचा’ बनाया गया है। यह एक खुली और शांत जगह है जहाँ सभी उम्र के लोगों के लिए विभिन्न विषयों की किताबें उपलब्ध हैं। इसकी एकमात्र शर्त है – किताब पढ़ने के बाद उसे उसी जगह वापस रखना, ताकि दूसरे भी इसका लाभ उठा सकें।
  • पारंपरिक स्वाद और अनुभव: गाँव की यात्रा कुल्हड़ वाली गर्मागरम चाय के बिना अधूरी है, जिसका स्वाद तालाब के शांत किनारे बैठकर लिया जा सकता है, जो एक ग्रामीण अनुभव को पूरा करता है।

खुरपी नेचर विलेज गाजीपुर

‘प्रभु की रसोई’: एक मानवीय पहल जो मिटाती है भूख

खुरपी नेचर विलेज की सबसे प्रेरणादायक पहलों में से एक है ‘प्रभु की रसोई’। सिद्धार्थ बताते हैं कि गाँव लौटने पर उन्होंने गरीबों को भोजन की किल्लत से जूझते देखा, जिसने उन्हें इस रसोई को शुरू करने के लिए प्रेरित किया। यह रसोई पूरी तरह से दान में मिले पैसों और अनाज के ज़रिए चलाई जाती है, जहाँ रोजाना 100 से 150 ज़रूरतमंदों के लिए ताजा और पौष्टिक भोजन तैयार किया जाता है। यह पहल समुदाय की सेवा और सहभागिता का एक बेहतरीन उदाहरण है, जो दर्शाता है कि छोटे स्तर पर भी बड़ा प्रभाव डाला जा सकता है।

आत्मनिर्भरता की ओर कदम: रोजगार और गाँव की अर्थव्यवस्था

सिद्धार्थ का मुख्य लक्ष्य गाँव को स्वरोजगार से जोड़ना था, और इसमें उन्हें जबरदस्त सफलता मिली है। गाय पालन से शुरू होकर, अब यहाँ तालाबों में मछली और बत्तख पालन को भी बढ़ावा दिया गया है। मुर्गी, खरगोश और तीतर जैसे पशुपालकों की आय का प्रमुख साधन बन गए हैं, और अंडों को स्थानीय बाजारों में बेचा जा रहा है। इतना ही नहीं, पशुधन से प्राप्त गोबर का उपयोग जैविक खाद बनाने के लिए किया जाता है, जिसे ‘केंचुआ खाद’ के रूप में आसपास के किसानों को बेचकर अतिरिक्त आय अर्जित की जा रही है। यह टिकाऊ चक्र गाँव की अर्थव्यवस्था को गति दे रहा है और ग्रामीण समुदाय को आत्मनिर्भर बना रहा है।

खुरपी नेचर विलेज आज गाजीपुर जिले से निकलकर दूर-दराज के इलाकों में अपनी पहचान बना चुका है। लोग अब इस अनोखे गाँव को देखने और ग्रामीण विकास के इस मॉडल को समझने के लिए बड़ी संख्या में पहुँच रहे हैं। यह एक प्रमाण है कि यदि सही सोच, समर्पण और सामूहिक प्रयास हो, तो भारत के गाँवों में भी शहर जैसी सुविधाएं और आत्मनिर्भरता लाई जा सकती है, और वे केवल पहचान ही नहीं, बल्कि प्रेरणा का स्रोत भी बन सकते हैं। यदि आप भी इस अनूठे गाँव का अनुभव लेना चाहते हैं, तो आप उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में स्थित सलामतपुर पहुंच सकते हैं, जो सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।

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9. FAQ 

खुरपी नेचर विलेज कहां स्थित है?

उत्तर: यह गांव उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में सलामतपुर क्षेत्र में स्थित है, जो जिला मुख्यालय से लगभग 15 किमी दूर है।

क्या खुरपी नेचर विलेज में जाने के लिए टिकट लगता है?

उत्तर: हां, यहां घूमने के लिए 20 रुपये का टिकट लिया जाता है।

खुरपी नेचर विलेज में क्या-क्या देखने को मिलेगा?

उत्तर: यहां चिड़ियाघर, बोटिंग, ओपन जिम, किताबों का बगीचा, प्रभु की रसोई, और रोजगार के लिए पशुपालन जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं।

इस गांव को किसने बनाया?

उत्तर: एमबीए ग्रेजुएट सिद्धार्थ राय ने इस गांव को आत्मनिर्भर और प्रेरणादायक मॉडल के रूप में विकसित किया है।

यहां कैसे पहुंचें?

उत्तर: गाजीपुर मुख्यालय से 15 किमी की दूरी पर स्थित इस गांव तक आप निजी वाहन या सरकारी बस से आसानी से पहुंच सकते हैं।

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मयंक शेखर

मैं मीडिया इंडस्ट्री से पिछले 7 सालों से जुड़ा हूं। नेशनल, स्पोर्ट्स और सिनेमा में गहरी रूचि। गाने सुनना, घूमना और किताबें पढ़ने का शौक है।

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