Site icon Khabar Kashi

Panchayat Season 4 Review: इस बार खाली हंसी नहीं, फुलेरा में राजनीतिक हलचल भी है

Panchayat season 4, panchayat 4 release today, panchayat season 4 X review,पंचायत, पंचायत वेब सीरीज, पंचायत सीजन 4, पंचायत 4 कैसी है, पंचायत 4 रिव्यू, panchayat season 4 twitter review, panchayat season 4 cast, panchayat season 4 prime video, panchayat season 4 review, panchayat season 4 rating, panchayat season 4 review in hindi, पंचायत अमेजन प्राइम वीडियो, जितेंद्र कुमार, नीना गुप्ता, रघुबीर यादव, दुर्गेश कुमार,
Panchayat Season 4 Review: वाह भई वाह! फुलेरा गाँव की माटी से लिपटा, अपनी सी लगने वाली ‘पंचायत’ सीरीज़ का चौथा सीज़न भी आ चुका है! और जैसे ही ये आया, पूरे इंटरनेट पर धूम मच गई, ठीक वैसे ही जैसे गाँव में प्रधानी के चुनाव के नतीजे आने पर मचती है। कहीं लाउडस्पीकर बज रहे थे तारीफों के, तो कहीं कुछ लोग खुसर-फुसर कर रहे थे कि ‘पिछला वाला ही ज़्यादा धांसू था!’ तो चलिए, आज हम भी अपने अंदाज़ में इस सीज़न का ‘ब्योरा’ लेते हैं,

पंचायत सीजीन 4ः कहानी का सार

भइया, जिसने पिछले तीन सीज़न देखे हैं, उसे पता है कि अभिषेक त्रिपाठी (हमारे प्यारे सचिव जी) सिर्फ़ सरकारी दफ़्तर की कुर्सी गर्म करने नहीं आए थे। उन्होंने गोबर से लेकर गांव की राजनीति तक सब समझा। अब इस चौथे सीज़न में खेल और बड़ा हो गया है। पिछली बार का वो ‘ट्रांसफर वाला ड्रामा’ तो याद ही होगा, इस बार कहानी वहीं से आगे बढ़ती है। फुलेरा में प्रधानी के चुनाव सिर पर हैं, तो गाँव की ‘राजनीति का पारा’ हाई है। Manju Devi और Kranti Devi के बीच की टक्कर इस बार कूकर (Kranti Devi का चुनाव चिन्ह) और लौकी (Manju Devi का चुनाव चिन्ह) की नहीं, बल्कि ‘इज़्ज़त की लड़ाई’ बन गई है। सचिव जी को इस बार सिर्फ़ अपने IAS के सपने और Rinki से अपने ‘नैन-मटक्के’ ही नहीं, बल्कि गाँव वालों के ‘छोटे-मोटे नहीं, बड़े-बड़े बवाल’ भी सुलझाने हैं। कहीं सड़क का मसला है तो कहीं सामाजिक ताने-बाने का, और हाँ, कुछ ‘भावनात्मक उथल-पुथल’ भी है जो आपको अंदर तक छू जाएगी।

किरदार

अभिषेक त्रिपाठी (सचिव जी): इस बार सचिव जी सिर्फ़ ‘सुलझे हुए सरकारी बाबू’ नहीं, बल्कि ‘गाँव के अनऑफिशियल ब्रांड एंबेसडर’ और ‘सबकी दुख-तकलीफों के डॉक्टर’ बन गए हैं। वो पहले से ज़्यादा समझदार और कॉन्फिडेंट दिखते हैं, लेकिन दिल में वही IAS वाला सपना और गाँव से बढ़ता ‘अजीब सा लगाव’ उन्हें परेशान करता रहता है। इस सीज़न में उनका इमोशनल साइड भी खुलकर सामने आया है। कहीं-कहीं उनका CAT का रिजल्ट भी दिमाग में घूमता है, जो उनके भविष्य का फैसला करेगा।
प्रधान जी (रघुबीर यादव): प्रधान जी का ‘पोटेंशियल’ इस सीज़न में और निखर कर आया है। वो अब सिर्फ़ ठहाके लगाने वाले और मंज़ू देवी के पीछे खड़े रहने वाले नेता नहीं, बल्कि ‘सही मायने में प्रधान’ बनने की कोशिश करते हैं। उनकी सादगी और अनुभव इस बार भी लाजवाब है। हालांकि, कुछ लोगों को लगता है कि उनकी भूमिका पर राजनीति भारी पड़ गई है।
मंजु देवी (नीना गुप्ता): हमारी सबकी ‘दबंग प्रधान’ मंजु देवी इस सीज़न में और भी ज़्यादा ‘धाकड़’ नज़र आती हैं। वो सिर्फ़ नाम की प्रधान नहीं, बल्कि अपने ‘सूझबूझ वाले फ़ैसलों’ से ये साबित भी करती हैं। चुनाव के मैदान में उनकी ‘देसी रणनीति’ और उनका अंदाज़ देखने लायक है।
विकास और प्रह्लाद (चंदन रॉय और फैसल मलिक): ये दोनों तो शो की ‘आत्मा’ हैं! विकास की वफ़ादारी और प्रह्लाद की ‘मासूमियत और अंदरूनी दर्द’ इस बार भी दिल को छू जाता है। प्रह्लाद के किरदार में इस बार भी वो इमोशनल गहराई है, जो आपको सोचने पर मजबूर करेगी। इनकी दोस्ती और जुगलबंदी अब ‘परिवार’ जैसी लगने लगी है।
विनोद, बनराकस (दुर्गेश कुमार) और क्रांति देवी (सुनीता राजवार): ये साइड कैरेक्टर नहीं, बल्कि शो के ‘स्पाइसी तड़के’ हैं। विनोद की ‘कमाल की टाइमिंग’ और बनराकस-क्रांति देवी की ‘खटपट भरी राजनीति’ इस सीज़न को और मज़ेदार बनाती है। बनराकस के किरदार को इस बार ‘ज़्यादा स्क्रीन टाइम’ और ‘मौका’ मिला है अपनी रेंज दिखाने का, और उन्होंने निराश नहीं किया।

भावनात्मक जुड़ाव (Emotional Impact):

‘पंचायत’ सिर्फ़ एक ‘हँसी-मज़ाक’ वाला शो नहीं है, ये ‘ज़िंदगी का एक टुकड़ा’ है। ये सीज़न भी आपको हँसाएगा, लेकिन कुछ पल ऐसे भी हैं जब आपकी आँखें नम हो जाएँगी, खासकर प्रह्लाद के दर्द और गाँव वालों की ‘छोटी-बड़ी परेशानियों’ को देखकर। शो आपको शहरी भागदौड़ से दूर, गाँव की ‘मिट्टी की ख़ुशबू’ और ‘रिश्तों की गर्माहट’ का अहसास कराता है। ये दिखाता है कि कैसे आम लोग मुश्किलों में भी एक-दूसरे का सहारा बनते हैं।

सबसे बेहतरीन एपिसोड

पूरा सीज़न ‘एक कम्फर्ट वॉच’ है, लेकिन कुछ एपिसोड्स ऐसे हैं जो ‘दिमाग में छप’ जाते हैं। वो एपिसोड जहाँ गाँव की इज़्ज़त दांव पर लगती है और सब मिलकर एक हो जाते हैं, या वो जहाँ अभिषेक अपनी निजी उथल-पुथल से जूझ रहा होता है। चुनाव से जुड़े एपिसोड्स में ‘पॉलिटिकल ड्रामा’ खूब है, जो आपको बांधे रखेगा। हालाँकि, कुछ लोगों को लगा कि इस बार ‘कॉमेडी थोड़ी कम’ और ‘पॉलिटिक्स थोड़ी ज़्यादा’ हो गई है।

पंचायत 4 क्यों देखें (Strengths):

कमाल का अभिनय: पूरी स्टारकास्ट ने एक बार फिर साबित किया है कि क्यों वे अपने किरदारों के ‘मास्टर’ हैं। हर कोई अपने रोल में इतना ‘फिक्स’ है कि लगता ही नहीं एक्टिंग कर रहे हैं।
यथार्थवाद और सादगी: शो की सबसे बड़ी जान इसकी ‘ज़मीनी हकीकत’ और ‘गाँव की सादगी’ को दिखाना है। ये आपको किसी बनावटी दुनिया में नहीं ले जाता।
हल्का-फुल्का हास्य: वो ‘देसी हास्य’ जो आपको सिर्फ़ हँसाता नहीं, बल्कि अंदर तक ‘गुदगुदाता’ है।
भावनात्मक गहराई: हँसी-मज़ाक के साथ-साथ, शो रिश्तों की गहराई और आम लोगों के दर्द को भी बख़ूबी दिखाता है।
कैमरा वर्क और बैकग्राउंड स्कोर: गाँव के ख़ूबसूरत नज़ारे और शो का ‘थीम सॉन्ग’ अब तक की तरह इस बार भी माहौल को और शानदार बनाते हैं।

पंचायत सीजन 4 की कुछ कमजोर कड़ियां (Weaknesses):

अब जहाँ अच्छाई है, वहाँ थोड़ी-बहुत ‘कमज़ोरी’ भी नज़र आ ही जाती है, भले ही टॉर्च लेकर ढूंढनी पड़े!
धीमी रफ़्तार: कुछ दर्शकों को लगा कि इस सीज़न की ‘रफ़्तार थोड़ी धीमी’ है, ख़ासकर जब कोई बड़ा मुद्दा नहीं चल रहा होता।
कॉमेडी का कम होना: कई रिव्यूज में ये बात सामने आई है कि ‘पिछलों सीज़न जैसी भरपूर कॉमेडी’ इस बार थोड़ी कम महसूस हुई है, क्योंकि ‘पॉलिटिक्स का डोज़’ ज़्यादा बढ़ गया है।
थोड़ी प्रेडिक्टिबिलिटी: अगर आप पंचायत के ‘पुराने खिलाड़ी’ हैं, तो कुछ कहानियाँ आपको ‘अंदाज़े वाली’ लग सकती हैं, लेकिन उनका एग्ज़ीक्यूशन फिर भी ठीकठाक है।
खींचा हुआ सा लगना: कुछ लोगों को लगा कि कहानी को ‘थोड़ा खींचा’ गया है या कुछ सीन्स ‘बिना मतलब’ के थे, जिससे कभी-कभी ‘बोरियत’ महसूस हो सकती है।
रोमांटिक ट्रैक: अभिषेक और Rinki का ‘रोमांटिक ट्रैक’ कुछ लोगों को ‘कमज़ोर या अधूरा’ लगा।

अंतिम फैसला और रेटिंग (Final Verdict & Rating):

‘पंचायत सीज़न 4’ ये साबित करता है कि ये शो सिर्फ़ ‘मनोरंजन का साधन’ नहीं, बल्कि ‘एक अनुभव’ है। भले ही कुछ लोगों को ये थोड़ा ‘फीका’ लगा हो या ‘तेज़ रफ़्तार’ वाला न हो, लेकिन इसका दिल अभी भी वहीं ‘फुलेरा की गलियों’ में धड़कता है। ये आपको हँसाएगा, रुलाएगा और ‘अपनी जड़ों’ से जोड़ेगा। अगर आप ‘ग्राम्य जीवन’, ‘देसी राजनीति’ और ‘कमाल के अभिनय’ के फैन हैं, तो ये सीज़न आपके लिए ही है।
रेटिंग: 4.2/5
जाओ भैया, बिना किसी ‘टेंशन’ के, पॉपकॉर्न लेकर बैठ जाओ और फुकेरा की इस ‘नई पारी’ का मज़ा लो! सचिव जी ने फिर से ‘कमाल’ कर दिखाया है, भले ही इस बार थोड़ी ‘कमी’ लगी हो!
Exit mobile version