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सतुआ संक्रांति: सूर्य उपासना, पूर्वजों की तृप्ति और स्वास्थ्य लाभ का पर्व

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सतुआ संक्रांति आज देश के कई हिस्सों में धूमधाम से मनाई जा रही।

सतुआ संक्रांति: भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं में प्रत्येक पर्व का गहरा आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व होता है। ऐसा ही एक पर्व है सतुआ संक्रांति, जिसे देश के विभिन्न हिस्सों में सतुआन या मेष संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व केवल सूर्य देव की उपासना का दिन नहीं है, बल्कि पूर्वजों की तृप्ति और मानव शरीर के संरक्षण का भी एक अनूठा माध्यम है।

सत्तू का दान और पितरों की तृप्ति

हिंदू धर्म की मान्यता है कि सतुआ संक्रांति के दिन सत्तू, जल से भरा घड़ा, पंखा, मौसमी फल और अन्य ठंडी वस्तुओं का दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन के दान को विशेष महत्व दिया गया है—कहा जाता है कि सत्तू के दान से देवता प्रसन्न होते हैं, जबकि जलघट (घड़ा) दान करने से पितरों की आत्मा तृप्त होती है

काशी के विख्यात ज्योतिषाचार्य पं. रत्नेश त्रिपाठी के अनुसार, “यह पर्व सूर्य के राशि परिवर्तन से जुड़ा है। आज के दिन सूर्य मीन राशि से निकलकर मेष राशि में प्रवेश करते हैं, जिससे खरमास समाप्त हो जाता है और मांगलिक कार्यों का शुभारंभ होता है।” यह परिवर्तन नवसंवत्सर की तरह एक नवीन सौर वर्ष का संकेत भी देता है।

पौराणिक और ज्योतिषीय महत्व

पौराणिक कथाओं में सतुआ संक्रांति का विशेष स्थान है। मान्यता है कि भगवान विष्णु ने राजा बलि को पराजित करने के बाद सबसे पहले सत्तू का भोजन किया था, जिससे यह परंपरा जन्मी। यह पर्व सूर्य देव को समर्पित होने के कारण विशेष पूजा-अर्चना की जाती है, और गंगा या अन्य पवित्र नदियों में स्नान का महत्व भी इसी दिन जुड़ा है।

पं. त्रिपाठी बताते हैं, “जिन लोगों की कुंडली में चंद्रमा कमजोर होता है, उनके लिए यह दिन विशेष होता है। यदि वे आज के दिन जल से भरा घड़ा दान करें, तो उनके चंद्रमा की स्थिति में सुधार होता है।”

स्वास्थ्य के लिए वरदान है सत्तू

सतुआ संक्रांति का एक और महत्वपूर्ण पक्ष इसका आयुर्वेदिक और स्वास्थ्यवर्धक पक्ष है। सत्तू, जो चना, जौ या गेहूं को भूनकर बनाया जाता है, गर्मी में शरीर को ठंडक पहुंचाता है। इसमें फाइबर, प्रोटीन और मिनरल्स भरपूर मात्रा में होते हैं।

आयुर्वेदाचार्यों के अनुसार, “गर्मी में घर से बाहर निकलने से पहले सत्तू का सेवन लू से बचाव करता है। यह शरीर को ठंडक देने के साथ-साथ पाचन तंत्र को भी मजबूत बनाता है।” सत्तू से बना शरबत शरीर की तपन दूर करता है और लंबे समय तक ऊर्जा बनाए रखता है।

पूर्वजों की स्मृति और परंपरा का सम्मान

सतुआ संक्रांति सिर्फ धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है, यह पूर्वजों की स्मृति, पर्यावरण के अनुकूल जीवन शैली और स्वास्थ्यपूर्ण भोजन की समग्र परंपरा को संजोता है। यह पर्व हमें दान, संयम, साधना और शरीर की रक्षा के प्रति जागरूक करता है।

वास्तव में, सतुआ संक्रांति भारत की गंगा-जमुनी परंपरा और ऋतुचक्र के अनुकूल जीवन दर्शन का प्रतीक है, जो धर्म, प्रकृति और स्वास्थ्य के बीच संतुलन स्थापित करता है।

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