तेहरान: सच्ची घटना पर आधारित एक महत्वपूर्ण फिल्म

जॉन अब्राह्म की तेहरान फिल्मः बॉलीवुड में देशभक्ति पर बनी फिल्मों की कमी नहीं है। कई फिल्मों में दो देशों के रिश्तों और तनाव को भी दिखाया गया है। इनमें कुछ कहानियां असली घटनाओं पर आधारित होती हैं, तो कुछ पूरी तरह काल्पनिक। हालांकि, डॉक्यूमेंट्री स्टाइल ड्रामा फिल्में यहां बहुत कम बनती हैं।

देशभक्ति फिल्मों की बात हो और जॉन अब्राहम का नाम न आए, ऐसा हो ही नहीं सकता। उन्होंने सत्यमेव जयते और बाटला हाउस जैसी कई फिल्मों में काम किया है, जो सच्ची घटनाओं से जुड़ी रही हैं। उनकी पिछली फिल्म द डिप्लोमेट भी असली घटना पर आधारित थी। सिनेमाघरों में उसे खास सफलता नहीं मिली, लेकिन ओटीटी पर दर्शकों ने सराहा।

अब जॉन एक नई फिल्म पिछले दिनों ओटीटी पर स्ट्रीम हुई थी जिसका नाम है- तेहरान । यह फिल्म न सिर्फ असल घटनाओं से प्रेरित है बल्कि राजनीति की झलक भी दिखाती है। आइए जानते हैं, इसमें क्या खास है।

जॉन की फिल्म तेहरान की कहानी और एक्टिंग

फिल्म 2012 में दिल्ली में हुई एक बम धमाके से शुरू होती है, जिसमें फूल बेचने वाली एक मासूम लड़की की जान चली जाती है, जिसे DCP राजीव कुमार (जॉन अब्राहम) पहचानते भी थे। यह घटना सिर्फ जासूसी कहानी की शुरुआत है, बल्कि एक राजनीतिक बवंडर का अग्रद्वार भी बन जाती है.

वैसे तो कहानी पुरानी पाण्डुलिपियों से ली गई प्रतीत होती। एस्पियनेज, अंतरराष्ट्रीय तनाव। लेकिन असली मज़ा ट्विस्ट में है। कहानी आपको खींचकर रखती है जब पूरा मामला भारत–इजराइल–ईरान के बीच के भूराजनीतिक में तब्दील होता है यह स्लो बर्न स्टाइल एक स्मार्ट बदलाव है जो दर्शक को थ्रिल और सोच दोनों का स्वाद देता है . 

जॉन अब्राहम ने इस फिल्म में अपना अलग ही रूप दिखाया है। यहां वह सिर्फ एक्शन हीरो नहीं, बल्कि एक भावुक, शांत और गहराई से भरा किरदार निभाते हैं। कई आलोचकों का मानना है कि यह उनके करियर की सबसे बेहतरीन परफॉर्मेंस में से एक है।

मानुषी छिल्लर फिल्म में एसआई दिव्या राणा के किरदार में हैं। उनका स्क्रीन टाइम भले ही कम हो, लेकिन उनकी मौजूदगी काफी असरदार है। बिना ज्यादा संवादों के भी उन्होंने अपने रोल को मजबूती से पेश किया है।नीरू बाजवा एक आत्मविश्वासी और संतुलित डिप्लोमैट की भूमिका में नजर आती हैं। उन्होंने अपने किरदार को शांति, स्टाइल और बेहतरीन कंट्रोल के साथ निभाया है। हादी खजानपुर खतरनाक लेकिन ठंडे दिमाग वाले विलेन की भूमिका में हैं। उनकी चालाकी और ठंडी रणनीतियां इस किरदार को और प्रभावी बनाती हैं। बाकी कलाकारों ने भी अपनी सीमित भूमिकाओं में अच्छा काम किया है और कहानी को मजबूती दी है।

संगीत और तकनीकी पक्ष (Music & Technical Aspects):

फिल्म में केतन सोधा का बैकग्राउंड स्कोर बहुत ही सूक्ष्म लेकिन प्रभावी; थ्रिल और सस्पेंस को खेताती तरह बढ़ाता है। फिल्म के गीत कुछ अच्छे हैं। दिल्ली, अबू धाबी के लोकेशन्स को वाकई जीवंत बनाते हैं; वास्तविकता का एहसास कराते हैं। अक्षरा प्रभाकर का संपादन तीव्र, सटीक; फिल्म की गति थामने नहीं देती।

अरुण गोपालन ने जटिल कथानक को संभाला है बड़े ही मास्टरफुल अंदाज में। वे चीयर-ओन्शन और कसकर संजोए गए थ्रिल के बीच संतुलन रखते हैं, जिससे फिल्म धीमी लेकिन पकड़नेवाली लगती है।

यह मसाला फिल्म नहीं; यह एक सोच-विचार, अंतर-राजनीतिक थ्रिलर है जो मनोरंजन साथ-साथ संदेश भी देता है: राज्य, प्यार, भरोसा, कितना मजबूत है आपका इरादी ताना-बाना? । यह दर्शाता है कि विजेता हमेशा प्यारे से नहीं होते और सही न्याय खुद लड़ना पड़ता है, अक्सर सिस्टम ही धोखा दे जाता है।

तेहरान फिल्म की कमजोरियाँ (Weak Points):

कहानी बहुत जटिल हो गई है — चरित्र और घटनाएं कभी-कभी भावनात्मक जुड़ाव डायल्यूट कर देती हैं। कुछ वरिष्ठ पात्रों को और विस्तार मिलता, तो भावनात्मक प्रभाव बढ़ता।  कुछ दर्शकों को यह दस्तावेज़-जैसा लगता हो सकता है (documentary-like) ।

मेरी व्यक्तिगत रेटिंग: 5 में से 3.5 सितारे ⭐⭐⭐½

क्योंकि यह फिल्म सामान्य जासूसी ड्रामा नहीं, बल्कि बुद्धिमत्ता, रणनीति और भावनाओं का मिश्रण है। तकनीकी पक्ष (कैमरा, स्कोर, एडिटिंग) और अभिनय – खासकर जॉन अब्राहम – बेहतरीन हैं। कुछ narrative complexity और pacing issues रहे, लेकिन overall यह एक प्रभावशाली, समय-सापेक्ष geopolitical thriller है।

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संजय कुमार

मैं खबर काशी डॉटकॉम के लिए बतौर एक राइटर जुड़ा हूं। सिनेमा देखने का शौक है तो यहां उसी की बात करूंगा। सिनेमा के हर पहलू—कहानी, अभिनय, निर्देशन, संगीत और सिनेमैटोग्राफी—पर बारीकी से नजर रहती है। मेरी कोशिश रहेगी कि मैं दर्शकों को ईमानदार, साफ-सुथरी और समझदारी भरी समीक्षा दूँ, जिससे वो तय कर सकें कि कोई फिल्म देखनी है या नहीं। फिल्में सिर्फ मनोरंजन नहीं, समाज का आईना भी होती हैं—और मैं उसी आईने को आपके सामने साफ-साफ रखता हूँ।"

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