हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
उन के देखे से जो आ जाती है चेहरे पर रौनक वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है
आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक कौन जीता है तेरी जुल्फ के सर होने तक...
हम को मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन दिल को खुश रखने को गालिब ये ख्याल अच्छा है
जला है जिस्म जहां दिल भी जल गया होगा कुरेदते हो जो अब राख जुस्तुजू क्या है
आता है दाग़-ए-हसरत-ए-दिल का शुमार याद मुझ से मिरे गुनह का हिसाब ऐ ख़ुदा न माँग
दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है