History of No-Confidence Motions: लोकसभा में बुधवार को कांग्रेस ने नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया। कांग्रेस ने मणिपुर पर प्रधानमंत्री द्वारा सदन में कुछ नहीं बोलने, इसपर चर्चा ना करने का आरोप लगाते हुए यह प्रस्ताव लाया जिसे उन्होंने विपक्षी गठबंधन ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस’ (इंडिया) का सामूहिक प्रस्ताव बताया।
अविश्वास प्रस्ताव क्यों लाया जाता है, जानें इसके मायने
अविश्वास प्रस्ताव क्यों लाया जाता है। दरअसल यह प्रस्ताव यह परीक्षण करने के लिए होता है कि क्या तत्कालीन सरकार को सदन के बहुमत का विश्वास प्राप्त है, क्योंकि संसदीय लोकतंत्र के तहत एक सरकार केवल तभी सत्ता में रह सकती है जब उसके पास सीधे निर्वाचित सदन में बहुमत हो। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 75(3) में कहा गया है कि मंत्रिपरिषद लोक सभा के प्रति उत्तरदायी होगी।
लोकसभा की प्रक्रिया और संचालन नियम
लोकसभा की प्रक्रिया और संचालन नियमों के नियम 198 के तहत, एक सदस्य को सुबह 10 बजे से पहले एक लिखित नोटिस देना होता है, जिसे लिखित प्रस्ताव जमा होने के 10 दिनों के भीतर स्पीकर द्वारा पढ़ा जाएगा। विश्वास प्रस्ताव पर चर्चा की तिथि तय करने के संदर्भ में 10 दिनों के भीतर फैसला करना होता है। सदन की मंजूरी के बाद इस पर चर्चा और मतदान होता है। अगर सत्तापक्ष इस प्रस्ताव पर हुए मतदान में हार जाता है तो प्रधानमंत्री समेत पूरे मंत्रिपरिषद को इस्तीफा देना होता है।
9 सालों में दूसरी बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना करेगी मोदी सरकार
गौरतलब है कि विगत 9 सालों में यह दूसरी बार होगा जब सरकार मोदी सरकार अविश्वास प्रस्ताव का सामना करेगी। इससे पहले, जुलाई, 2018 में मोदी सरकार के खिलाफ कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लाया था। इस अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में सिर्फ 126 वोट पड़े थे, जबकि इसके खिलाफ 325 सांसदों ने वोट दिया था। इस बार भी अविश्वास प्रस्ताव का भविष्य पहले से तय है क्योंकि संख्याबल स्पष्ट रूप से भाजपा के पक्ष में है और निचले सदन में विपक्षी दलों के 150 से कम सदस्य हैं। लेकिन उनकी दलील है कि वे चर्चा के दौरान मणिपुर मुद्दे पर सरकार को घेरते हुए धारणा से जुड़ी लड़ाई में सरकार को मात देने में सफल रहेंगे।
अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के कितने संसद सदस्यों के समर्थन की जरूरत होती है?
अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के लिए जरूरी है कि उसे कम से कम 50 सदस्यों का समर्थन हासिल हो। 10 दिनों के भीतर फैसला करना जरूरी होता है। सदन की मंजूरी के बाद इस पर चर्चा और मतदान होता है।
अविश्वास प्रस्ताव का इतिहास (No-Confidence Motions History), पहला अविश्वास प्रस्ताव कब लाया गया?
पंडित नेहरू (pt. jawahar lal nehru) के खिलाफ 1963 में पेश हुआ था पहला अविश्वास प्रस्ताव। भारतीय संसदीय इतिहास में अविश्वास प्रस्ताव लाने का सिलसिला देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के समय ही शुरू हो गया था। 1962 के युद्ध के तुरंत बाद, प्रधान मंत्री की चीन नीति को लेकर 1963 में आचार्य जे.बी. कृपलानी द्वारा जवाहरलाल नेहरू सरकार के खिलाफ पहला अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था। इस प्रस्ताव के पक्ष में केवल 62 मत पड़े थे जबकि विरोध में 347 मत आए थे।
इंदिरा गांधी को 15 अविश्वास प्रस्तावों का सामना करना पड़ा
इंदिरा गांधी (Indira gandhi) को अपने 16 साल के कार्यकाल में 15 अविश्वास प्रस्तावों का सामना करना पड़ा। जिसमें प्रधानमंत्री के रूप में उनके 16 साल के कार्यकाल (1966-77 और फिर 1980 से अक्टूबर 1984 में उनकी हत्या तक) शामिल थे। इंदिरा गांधी के पहले कार्यकाल में 12 अविश्वास प्रस्ताव आए, जिनमें 1967 में अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा लाया गया एक और उनके दूसरे कार्यकाल में तीन अविश्वास प्रस्ताव शामिल थे।
पी वी नरसिंह राव, लाल बहादुर शास्त्री के खिलाफ तीन अविश्वास प्रस्ताव लाए गए
इसके अलावा बाद लाल बहादुर शास्त्री, राजीव गांधी, पी वी नरसिंह राव, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह समेत कई प्रधानमंत्रियों को अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा था। लाल बहादुर शास्त्री के खिलाफ तीन अविश्वास प्रस्ताव, पी वी नरसिंह राव के खिलाफ तीन, मोरारजी देसाई के खिलाफ दो और राजीव गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ एक-एक प्रस्ताव लाये गए थे।
विश्वास प्रस्ताव का सामना करते हुए तीन सरकार को सत्ता से बाहर जाना पड़ा
मोदी सरकार के खिलाफ दूसरी बार अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने से पहले कुल 27 बार अविश्वास प्रस्ताव लाए गए हैं और इनमें से किसी भी मौके पर सरकार नहीं गिरी, हालांकि विश्वास प्रस्ताव का सामना करते हुए तीन सरकार को जाना पड़ा था।
अविश्वास प्रस्ताव के द्वारा हटाए जाने वाले प्रथम प्रधानमंत्री
आखिरी बार 1999 में विश्वास प्रस्ताव का सामना करते हुए अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिरी थी। अविश्वास प्रस्ताव के द्वारा हटाए जाने वाले प्रथम प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई थे। साल 1978 था। आपातकाल के बाद हुए चुनाव में जनता पार्टी को बहुमत मिला और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। मोरारजी देसाई सरकार के कार्यकाल के दौरान उनके खिलाफ दो बार अविश्वास प्रस्ताव लाया गया। पहले प्रस्ताव से उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई, लेकिन 1978 में दूसरी बार लाए गए अविश्वास प्रस्ताव में उनकी सरकार के घटक दलों में आपसी मतभेद थे। अपनी हार का अंदाजा लगते ही मोरारजी देसाई ने मत-विभाजन से पहले ही इस्तीफा दे दिया।