1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में, परमवीर चक्र से सम्मानित अब्दुल हमीद ने एक ऐसा कारनामा किया, जिसे आज भी दुश्मन देश याद कर सिहर उठता है। उन्होंने अपनी साधारण सी ‘गन माउंटेड जीप’ से उस समय के अजेय माने जाने वाले अमेरिका निर्मित आठ पैटन टैंकों को अकेले तबाह कर दिया था। इस वीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस घटना के बाद अमेरिका को अपने पैटन टैंकों की डिज़ाइन की फिर से समीक्षा करनी पड़ी थी।
वीर अब्दुल हमीद: एक संक्षिप्त परिचय
उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के धामूपुर गांव में 1 जुलाई 1933 को जन्मे अब्दुल हमीद भारतीय सेना की 4 ग्रेनेडियर रेजिमेंट में सिपाही थे। उन्होंने 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान अद्भुत साहस का परिचय देते हुए देश के लिए अपनी जान न्योछावर कर दी। उनकी वीरता और बहादुरी को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च सैन्य पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित करने की घोषणा 16 सितंबर 1965 को की थी।
हमीद 7 दिसंबर 1954 को भारतीय सेना की ग्रेनेडियर रेजीमेंट में भर्ती हुए। उन्होंने अपनी बटालियन के साथ आगरा, अमृतसर, जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, नेफा और रामगढ़ जैसे कई स्थानों पर सेवाएं दीं। 1962 के चीन युद्ध में भी उनकी बटालियन ने हिस्सा लिया था।
1965 युद्ध और पैटन टैंकों का विनाश
1965 में, पाकिस्तानी सेना ‘ऑपरेशन जिब्राल्टर’ के तहत जम्मू-कश्मीर में लगातार घुसपैठ कर भारत में अस्थिरता फैला रही थी। भारतीय सेना ने पाया कि पाकिस्तान कश्मीर पर कब्ज़ा करने के लिए गुरिल्ला हमले की योजना बना रहा था।
पाकिस्तानी हमले के दौरान, वीर अब्दुल हमीद पंजाब के तरनतारन जिले के खेमकरण सेक्टर में सेना की अग्रिम पंक्ति में तैनात थे। पाकिस्तान ने उस समय के अपराजेय माने जाने वाले अमेरिकी पैटन टैंकों के साथ खेमकरण सेक्टर के असल उत्तर गांव पर हमला किया। पाकिस्तान को अपने अमेरिकी टैंकों पर बहुत भरोसा था, लेकिन भारतीय सैनिक अपने जज्बे के दम पर थ्री नॉट थ्री राइफल और एलएमजी जैसे हथियारों के साथ उनका सामना कर रहे थे।
इसी बीच, अब्दुल हमीद अपनी गन माउंटेड जीप में बैठकर पैटन टैंकों के कमजोर हिस्सों पर सटीक निशाना लगाने लगे। उन्होंने एक-एक करके आठ पैटन टैंकों को नष्ट कर दिया। देखते ही देखते असल उत्तर गांव पाकिस्तानी पैटन टैंकों का कब्रगाह बन गया। इस दौरान हमीद की जीप पर दुश्मन का एक गोला गिरने से वह गंभीर रूप से घायल हो गए और अगले दिन, 9 सितंबर को उनका स्वर्गवास हो गया।
परमवीर अब्दुल हमीद की यह वीरता आज भी भारतीय सेना के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है, जो साहस, बलिदान और अदम्य इच्छाशक्ति का प्रतीक है।